मैं और आलोक अब एक ही शहर में रहते हैं| ऐसा बड़े दिनों बाद हो पाया है|१२ साल पहले एक ही क्लास में पढने से लेकर आज एक ही शहर में फिर से दोनों रोज़ अपनी अपनी दौड़ दौड़ते हैं | इन बीते सालों में बहुत कुछ किया है हमने साथ में,लिखने बैठूं तो शायद रात से सुबह,फिर सुबह से रात हो जाए| aS भी इन्ही में से एक है|
पहले हम दोनों थे ,फिर और लोग जुड़े| अर्पिता और शिवी की कलम की अमिट छाप यहाँ पड़ी| फिर मोही आई और अपने साथ लायी इतना सारा जोश की जैसे मैं और आलोक तो बस देखते ही रह गए |आज aS का दूसरा जन्मदिन है और हम सब बहुत खुश हैं| बस यही बात कहनी थी ,और कुछ नहीं |और अब तो जिस तरह के लोगों के साथ मेरी दोस्ती है ,इनके साथ तो जीने के लिए १००० साल भी कम पड़ जाएँ ,पर जो साल बीत गए ,उनमें ज़िन्दगी ने ...
पहले हम दोनों थे ,फिर और लोग जुड़े| अर्पिता और शिवी की कलम की अमिट छाप यहाँ पड़ी| फिर मोही आई और अपने साथ लायी इतना सारा जोश की जैसे मैं और आलोक तो बस देखते ही रह गए |आज aS का दूसरा जन्मदिन है और हम सब बहुत खुश हैं| बस यही बात कहनी थी ,और कुछ नहीं |और अब तो जिस तरह के लोगों के साथ मेरी दोस्ती है ,इनके साथ तो जीने के लिए १००० साल भी कम पड़ जाएँ ,पर जो साल बीत गए ,उनमें ज़िन्दगी ने ...
कभी खुशियों की बारिश में मानो ऐसा कर दिया हो तर-बतर
तो कभी छोड़ दिया यूं ही अनजान से मरू-स्थल में प्यासा भटकने को..
इसी रिमझिम फुहार को , तो कभी इसी प्यास को
कहीं कुछ शब्द दे सकूँ,सो
मैं लिखता हूँ |
कभी झाँका खुद में ही तो दिखा अथाह समंदर
कभी इसी स्वयं को पाया छिछले पानियों में पत्थर मारते हुए..
इसी अथाहता, तो कभी इसी छिछलेपन में
उलझा हुआ कभी- कभी
मैं लिखता हूँ|
कभी पाया खुद को पहाड़ों पर गला फाड़ कर चिल्लाते हुए,
तो कभी गिरा यूं भी ठोकर खा धड़ाम से..
इन्ही ऊंचाइयों को,इन्ही गहराईयों को मापने की कोशिश में
मैं लिखता हूँ |
कुछ दिनों पहले में और आलोक ,हम दोनों दोस्त "ज़िन्दगी मिलेगी ना दोबारा" देखने गए. इस फिल्म ने हम दोनों को कई स्तरों पर प्रभावित किया |
ये कविता इसी मुलाकात के बाद बस में बैठे बैठे लिखी थी . "मैं लिखता हूँ " इमरान के शब्द हैं जब उसके पिता उससे पूछते हैं की वो क्या करता है |
-प्रणव
10 Comments:
उम्दा कविता.
कविता पढ़ते वक़्त मैं यह सोच रहा था की फरहान की आवाज़ में यह कविता समा बाँध देती.
बहुत कम बार लोग किसी फिल्म के संवाद पर कोई कविता लिखते हैं. विषय काफी दिलचस्प है.
"मैं लिखता हूँ." तुम वाकई में अच्छा लिखते हो.
Nishabd, stabdh, Bhawvibhor! :')
Gadyatmak kavita. Aapke shabdo ki gehraayion mein stabdh, nishabd si khadi hoon. Aur kavita ke pehle ki panktiyon ne bhawvibhor kar diya.
Thank you for making me a part of it. aS is not a mere website for me. It is dream. It's like my own tulip plant which I water everyday. Each day it grows a little bit and it is really hard to express in words how happy I become to see my plant grow this fast. Bearing pretty flowers and neat leaves. Hope to complete many more beautiful years with it. :)
I wish I could see it on the full website. My mobile device takes away the beautiful appearance of aS. :(
मैं लिखता हूँ.
हम दोनों लिखते हैं.
हम सब लिखते हैं.
:D
@Mohi... Agreed. This blog is something very personal yet we love to share it with the world. It feels lovely to watch it grow, step by step, every single day.
@Alok,Mohi
तुम दोनों लिखते हो, तभी शायद "मैं लिखता हूँ"|
कभी कभी इस आसमां को देख कर
कभी इस धरा को देख कर
तो कभी इस तरह के लेख देख कर
फिर से लिखने की चाह होती है... ताकि मैं भी बोल सकूँ की.... मैं भी लिखता हूँ |
@Robin
दोस्त,इस बार मत रोको अपनी कलम को ,जो भी मन में आये बस लिख डालो |
Thanks for the read man!!
Nice reading this piece about your friendship journey, Pranav..Inspired!!
@Nitesh
Appreciation from friends like you is one of the things that fuels efforts like aS.
Big Thanks for the read man. :)
यह शब्द नही भावना है,
अपने दोस्तों के लिए ..!!
Truly Express
Thanks Shrishti :)
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